कर्ज़ में डूबे अनिल अंबानी क्या ‘उड़ा’ पाएँगे फ़्रांस से मिले रफ़ाल जेट?

कर्ज़ में डूबे अनिल अंबानी क्या ‘उड़ा’ पाएँगे फ़्रांस से मिले रफ़ाल जेट?
प्राइवेट सेक्टर के यस बैंक ने दो हज़ार 892 करोड़ (anil ambani rafael news) रुपये का बकाया कर्ज़ नहीं चुकाने पर अनिल अंबानी समूह के मुख्यालय को अपने कब्ज़े में ले लिया है.
साथ ही बैंक ने अख़बार में नोटिस जारी कर यह बताया कि अनिल अंबानी की कंपनी ‘रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर’ के कर्ज़ का भुगतान नहीं करने के कारण दक्षिण मुंबई स्थित उनके दो फ्लैट भी कब्ज़े में लिए गए हैं.
अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) की लगभग सभी कंपनियाँ मुंबई के सांताक्रूज़ कार्यालय ‘रिलायंस सेंटर’ से चलती हैं. हालांकि, पिछले कुछ साल के दौरान समूह की कंपनियों की वित्तीय स्थिति काफ़ी ख़राब हो गई है. कुछ कंपनियाँ दिवालिया हो गई हैं, जबकि कुछ को अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ी है.
यस बैंक के अनुसार अनिल अंबानी को 6 मई 2020 को नोटिस दिया गया था, लेकिन 60 दिन के नोटिस के बावजूद समूह बकाया नहीं चुका पाया जिसके बाद 22 जुलाई को उसने तीनों संपत्तियों को कब्ज़े में ले लिया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, अनिल अंबानी (anil ambani rafael news) की कंपनी 21,432 वर्ग मीटर में बने अपने इस मुख्यालय को पिछले साल पट्टे पर देना चाहती थी ताकि वो कर्ज़ चुकाने के लिए संसाधन जुटा सके.
सोशल मीडिया पर बहुत से लोग इस ख़बर को भारत के रफ़ाल सौदे और इसमें अनिल अंबानी की कंपनी की भूमिका से जोड़कर देख रहे हैं.
पारिवारिक बँटवारे के बाद अनिल अंबानी का कोई भी धंधा पनप नहीं पाया, उनके ऊपर भारी कर्ज़ है, अब वे कुछ नया शुरू करने की हालत में नहीं हैं, वे अपने ज़्यादातर कारोबार या तो बेच रहे हैं या फिर समेट रहे हैं, रफ़ाल के रूप में उन्हें जो नया ठेका मिला, वो भी कई वजहों से विवादों में घिरा रहा और अब यस बैंक के रूप में ये नई समस्या आई.
ग़ौरतलब है कि रफ़ाल को बनाने वाली फ़्रांसीसी (anil ambani rafael news) कंपनी डसॉ एविएशन ने अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को अपना ऑफ़सेट पार्टनर बनाया है जिसे लेकर सवाल उठते रहे हैं. विपक्ष सवाल उठाता रहा है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की जगह पर अंबानी की दिवालिया कंपनी के साथ 30,000 करोड़ रुपए का क़रार क्यों किया गया.
ऐसे में इस ‘डिफ़ेंस डील से जुड़े वायदे’ निभा पाना अनिल अंबानी के लिए कितना आसान होगा?
इस पर आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी कहते हैं कि ‘ये सवाल पहले भी उठा है जो अब और गंभीर होता जा रहा है.’
उन्होंने कहा, “लंदन की एक अदालत में अनिल अंबानी का ये कहना कि उनके पास देने को अब कुछ नहीं है, अपने आप में यह सवाल उठाने के लिए पर्याप्त है कि अनिल को भारत के इस महत्वपूर्ण रक्षा सौदे में साझेदार क्यों होना चाहिए? वैसे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, दिवालिया हो चुके लोगों के कई तरह की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाई जाती है.”
डिफ़ेंस क्षेत्र में लगभग ना के बराबर अनुभव वाली अनिल अंबानी (anil ambani rafael news) की कंपनी रिलायंस डिफ़ेंस के इस रक्षा सौदे में शामिल होने पर भी काफ़ी हंगामा हुआ था. विपक्ष की ओर से यह भी कहा गया कि ‘ये भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला सौदा है.’
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आलोक जोशी कहते हैं, “पहले बात सिर्फ़ अंबानी की कंपनी के तजुर्बे तक थी, जिस पर भारत सरकार ने कहा कि फ़्रांसीसी डिफ़ेंस कंपनी ‘डसॉ एविएशन’ ने सिर्फ़ अंबानी को नहीं चुना, बल्कि उसने भारत की कई और कंपनियों को भी पार्टनर बनाया है. जबकि अंबानी की कंपनी यह दावा करती है कि ‘वो इस सौदे में असली निर्णायक साझेदार है.’ इस पूरे बिज़नेस में भारत सरकार की क्या भूमिका है, इस पर टीम-मोदी कुछ नहीं बोलती. सवाल पूछे जाने पर इसे ‘एक पवित्र मुद्दा’ बताया जाता है और कहा जाता है कि ‘देश की रक्षा से जुड़े मामले पर कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया जायेगा.’ फिर सवाल उठता है कि ‘अगर ये वाक़ई इतना महत्वपूर्ण मुद्दा है’ तो क्यों ऐसी डूबती हुए कंपनी को साथ लिया जा रहा है.”
आलोक जोशी बताते हैं, “अंबानी की जिस बिल्डिंग को (anil ambani rafael news) यस बैंक ने कब्ज़े में लिया है, वो जगह असल में बिजली सप्लायर बीएसईएस की थी. अंबानी ने इस जगह को उनसे ख़रीदा था. मुंबई में बेस्ट और टाटा के अलावा रिलायंस पावर बिजली सप्लाई करते थे जिसे अब अडानी ख़रीद चुके हैं. ये उद्योगपति वही हैं जो सरकार के साथ दिखाई पड़ते हैं. इन्हीं के बीच सौदे होते रहते हैं. तो ये कह पाना कि अंदर-खाने क्या हो रहा है, थोड़ा मुश्किल है. पर रफ़ाल के मामले में कल को सरकार के सामने दोबारा सवाल उठते हैं तो वो कह सकती है कि अंबानी मुसीबत में हैं तो डसॉ एविएशन इसकी चिंता करे या अंबानी वो सौदा किसी अन्य को बेच दें.”
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