Maths Pedagogy FOR CTET-UPTET-HTET-BTET-SUPER TET

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गणित सम्बन्धित अवधारणाएं
- गणित गणनाओं (Maths Pedagogy FOR CTET-UPTET-HTET-BTET-SUPER TET) का विज्ञान है।
- गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है।
- गणित माप–तौल (मापन), मात्रा (परिमाण) तथा दिशा का विज्ञान है।
- इसमें मात्रात्मक तथ्यों और सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
- यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है।
- गणित विज्ञान की क्रमबद्ध, संगठित तथा यथार्थ शाखा है।
- गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत विकसित होती है।
- गणित वह विज्ञान है जिसमे आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
- यह तार्किक विचारों का विज्ञान है।
गणित की प्रकृति – (Maths Pedagogy FOR CTET-UPTET-HTET-BTET-SUPER TET)
गणित की प्रकृति को अनेक रूपों में दर्शाया गया है जिनमें प्रमुख हैं
1. गणित में संख्याएं, स्थान, दिशा तथा मापन या माप–तौल का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
2. गणित में अमूर्त प्रत्ययों को मूर्त रूप में परिवर्तित किया जाता है, साथ ही उनकी व्याख्या भी की जाती है।
3. गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियां हैं।
4. गणित के अध्ययन से बालकों में आत्म–विश्वास और आत्म–निर्भरता का विकास होता है।
5. इसके अध्ययन से प्रत्येक ज्ञान तथा सूचना स्पष्ट होती है तथा उसका एक सम्भावित उत्तर निश्चित होता है।
6. गणित की अपनी भाषा है। भाषा का तात्पर्य – गणितीय पद, गणितीय प्रत्यय, सूत्र, सिद्धांत तथा संकेतों से है जो विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की भाषा को जन्म देते हैं।
7. इसके ज्ञान का आधार निश्चित होता है, जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।
8. गणित के ज्ञान से बालकों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण तथा भावना का विकास होता है।
9. गणित का ज्ञान यथार्थ, क्रमबद्ध, तार्किक, तथा अधिक स्पष्ट होता है, जिससे उसे एक बार ग्रहण करके आसानी से भुलाया जा सकता।
10. इससे बालकों में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करता है।
11. गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं, जिससे उनकी सत्यता की जांच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।
12. इसके विभिन्न नियमों, सिद्धांतों, सूत्रों आदि में सन्देह की सम्भावना नहीं रहती है।
13. गणित के अध्ययन से आगमन, निगमन तथा सामान्यीकरण की योग्यता विकसित होती है।
14. इसमें सम्पूर्ण वातावरण में पायी जाने वाली वस्तुओं के परस्पर संबंध तथा संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
15. गणित के ज्ञान का उपयोग विज्ञान की विभिन्न शाखाओं यथा – भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन में किया जाता है।
16. गणित की भाषा सुपरिभाषित, उपयुक्त तथा स्पष्ट होती है।
17. गणित, विज्ञान की विभिनन शाखाओं के अध्ययन में सहायक ही नहीं, बल्कि उनकी प्रगति तथा संगठन की आरशिला है।
18. इसमें प्रदत्तों अथवा सूचनाओं (संख्यात्मक) को आधार मानकर संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
गणितः तर्कपूर्ण सोच (Logical Thinking)
गणित शिक्षण तर्क पर आधारित होता है। जिसकी पुष्टि निम्न बिन्दुओं के आधार पर की जा सकती है : RAI विज्ञान विषयों के आधार के रूप में गणित : भौतिकशास्त्र, रसायन शास्त्र, नक्षत्रशास्त्र (Astronomy), जीव विज्ञान (Biology), चिकित्सा विज्ञान (Medical Science), भूगर्भ विज्ञान (Geology), ज्योतिष विज्ञान (Astrology)
- गणित का मानव जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध : इन्जीनियरिंग, बैंकिंग तथा अन्य व्यवसाय ये गणित से सीधे संबंधि
- बैंकिंग तथा अन्य व्यवसाय कम्प्यूटर संगणन ये गणित से सीधे संबंधित हैं।
- यथार्थ विज्ञान के रूप में गणित : गणित के सभी प्रत्यय सूत्र तथ्य आदि यथार्थ होते हैं – 4×4 = 16
- गणित मानसिक शक्तियों को विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।
- गणित की भाषा सार्वभौमिक होती है।
- गणित का ज्ञान अन्य विषयों के अध्ययन में सहायक होता है।
- गणित में सार्थक, अमूर्त तथा संगत संरचनाओं का अध्ययन किया जाता है।
- गणित समूहों (समुच्चय) तथा संरचनाओं का अध्ययन है।
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गणित को अनिवार्य विषय बनाने के मुख्य कारण – (Maths Pedagogy FOR CTET-UPTET-HTET-BTET-SUPER TET)
- यदि गणित विषय को पाठ्यक्रम में उचित स्थान न दिया गया तो बच्चों को मानसिक प्रशिक्षण (Mental Training) के अवसर नहीं मिल सकेंगे जिसके अभाव में उनका बौद्धिक विकास प्रभावित हो सकता है।
- गणित का ज्ञानार्जन करने के लिए गणित सम्बन्धी ऐसी कोई जन्म–जात विशेष योग्यता एवं कुशलता नहीं होती, जो कि दूसरे विषयों के अध्ययन की योग्यता से अलग हो। गणित ही एक ऐसा विषय है जिसमें बच्चों को अपनी तर्क-शक्ति, विचार-शक्ति, अनुशासन, आत्म-विश्वास तथा भावनाओं पर नियन्त्रण रखने का प्रशिक्षण मिलता है।
- गणित के माध्यम से ही छात्रों में नियमित तथा क्रमबद्ध रूप से ज्ञान ग्रहण करने की आदतों का विकास होता है।
- प्रत्येक विषय के अध्ययन में गणित के ज्ञान की प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से आवश्यकता पड़ती है क्योंकि गणित को सभी विज्ञानों का विज्ञान तथा समस्त कलाओं की कला माना जाता है।
विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित का महत्व
गणित को अधिक महत्व तथा अनिवार्य विषय बनाये जाने पर बच्चों को अनेक लाभ होते हैं जिनको गणित की शिक्षा में मूल्य भी कहते हैं। गणित के महत्व को उसके विभिन्न मूल्यों द्वारा ही स्पष्ट किया जा सकता है। गणित शिक्षण के निम्नलिखित मूल्य हैं।
- बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value)
- प्रयोगात्मक मूल्य (Utilitarian or Practical Value)
- अनुशासन सम्बन्धी मूल्य (Disciplinary Value)
- नैतिक मूल्य (Moral Value)
- सामाजिक मूल्य (Social Value)
- सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Value)
- सौन्दर्यात्मक या कलात्मक मूल्य (Aesthetic Value)
- जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य (Vocational Value)
- मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological Value)
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बन्धित मूल्य (Value related to scientific attitude)
शिक्षण में गणित का महत्त्व अथवा उपयोगिता
शिक्षा के क्षेत्र में गणित का अत्यधिक महत्व है। आधुनिक युग में सभ्यता का आधार गणित ही है। मातृ भाषा के अलावा ऐसा कोई विषय नहीं है, जो दैनिक जीवन से इतना अधिक संबंधित हो। गणित को व्यापार का प्राण एवं विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है। वर्तमान समय में गणित को विद्यालयी पाठ्य–विषयों में विशेष स्थान प्रदान किया गया है। इसका प्रमुख कारण है कि गणित बालक को अपनी जीविका कमाने के योग्य बनाने के साथ हो, उसके ज्ञान में वृद्धि करता है तथा जीवन के विभिन्न कार्यों को सीखने और करने में सहायता करता है। विद्यार्थियों को मानसिक विकास करके उनकी बुद्धि को प्रखर बनाता है। यह विद्यार्थियों में स्पष्टता, आत्मविश्वास, नियमितता, शुद्धता, एकाग्रता आदि गुणों को विकसित करता है तथा चरित्र के निर्माण में सहायता करता है।
गणित के महत्व को इस प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –
1. दैनिक जीवन में महत्त्व : हमारे चारों ओर का जीवन तथा हमारे दिन प्रतिदिन का व्यवहार पूर्ण रूप से गणित से भरा हुआ है। प्रत्येक बात को समझाने के लिए हमें थोड़ी–बहुत गणित की आवश्यकता पड़ती है। दैनिक जीवन में हमें घर–बाहर, बाजार, क्रय–विक्रय, आय–व्यय आदि सभी में गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। गणित के बिना हमारा जीवन गूंगे, बहरे तथा अंधे संसार के समान हो जाएगा। गणित के ज्ञान से रहित व्यक्ति न तो परिवार को सुचारू रूप से चला सकता है तथा न ही समाज में कुछ कर सकता है। यदि छात्रों को आरम्भ से ही प्रारम्भिक गणित (गिनना, जोड़ना–घटाना तथा गुणा–भाग आदि) का ज्ञान नहीं कराया जाता तो वह अपने जीवन में अनुभवों को समझने–समझाने में असमर्थ रहेंगे इसलिए पाठ्यक्रम में प्रारम्भिक कक्षाओं से ही गणित का ज्ञान कराया जाना चाहिए।
2.निश्चितता और आत्मनिर्भरता की दृष्टि से महत्व : गणित एक ऐसा विषय है, जो व्यक्ति को निश्चितता सिखाता है। गणित छात्रों में दृढ़ता तथा आत्मविश्वास उत्पन्न करता है। सत्य अथवा असत्य की शुद्धि और अशुद्धि की जांच गणित के माध्यम से ही होती है। गणित छात्रों में आत्मनिर्भरता तथा आत्मविश्वास उत्पन्न करता है और (Maths Pedagogy FOR CTET-UPTET-HTET-BTET-SUPER TET) इस कारण पाठ्यक्रम में उसे इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
3. आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति में महत्व : आधुनिक युग विज्ञान का युग है। आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति भी विज्ञान की देन है। विज्ञान भी गणित के बिना नहीं चल सकता तथा इसी कारण से गणित का पाठ्यक्रम में विशिष्ट स्थान है। आर्थिक क्षेत्र में व्यवसाय, उद्योग, यातायात, कृषि व्यापार आदि में से कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो कि गणीत के बिना चल सकें। स्वयं विज्ञान भी गणित पर आधारित है। समाज में प्रगति के लिए भी गणित का ज्ञान आवश्यक हो जाता है।
4. अंतर्राष्ट्रीय महत्व : गणित का अध्ययन विभिन्न राष्ट्रों में पारस्परिक सहयोग की भावना की वृद्धि करता है। सभी देशों के गणितज्ञ वैज्ञानिक किसी नये नियम, सिद्धांत अथवा शोध कार्य पर परस्पर मिलकर विचार विनिमय करते हैं और उसे सम्पूर्ण मानव जाति के हित के लिए उपयोग में लाते हैं।
5. उपयोगात्मक महत्व : व्यावहारिक जीवन में गणित की उपयोगिता अन्य विषयों की तुलना में बहुत अधिक है। दैनिक जीवन में क्रय–विक्रय, माप–तौल, जोड़ना–घटाना, आय–व्यय आदि का लेखा–जोखा आदि सभी व्यक्तियों को करना पड़ता है। इस प्रकार घर, दफ्तर, व्यापार सभी जगह गणित की आवश्यकता पड़ती है। अतएव गणित संबंधी गणनाओं के बिना दैनिक जीवन की क्रियाएं पूर्ण नहीं हो पाती है।
6. प्रकृति के अध्ययन के लिए उपयोगी : यंग के अनुसार, गणित मानव मस्तिष्क की भांति प्रकृति में भी निहित है। प्रकृति की सबसे बड़ी विशेषता परिवर्तन एवं विचरण है। गणित एक कलन है, जो कि विचरण का अध्ययन करती है। इसी कारण कलन को प्रकृति का गणित कहा जाता है। प्राकृतिक घटनाओं जैसे – सूर्य, चन्द्रमा, तारों के निकलने तथा छिपने का समय उसकी स्थिति एवं दिशा आदि के ज्ञान में गणित विशेष उपयोगी सिद्ध होता है।”
7. बौद्धिक महत्व : मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए गणित शिक्षण का अत्यन्त महत्व है। पाठ्यक्रम का कोई ऐसा विषय नहीं है, जो कि गणीत की भाग मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता है। जैसे ही गणित की कोई समस्या आपके समक्ष आती है, आपका मस्तिष्क उस समस्या को समझने तथा उसे हल करने में क्रियाशील हो जाता है। गणित की हर समस्या के लिए मानसिक प्रयास की आवश्यकता होती है तथा इसके माध्यम से छात्र की विचारने, तर्क करने, विश्लेषण करने तथा विवेचना करने की शक्तियों का विकास होता है।
8. नियमितता तथा विविधता की दृष्टि से महत्व : गणित एक (Maths Pedagogy FOR CTET-UPTET-HTET-BTET-SUPER TET) ऐसा विषय है, जिसके शिक्षण से छात्रों में नियमितता एवं विधिवत् रूप से कार्य करने का अभ्यास होता है, क्योंकि जब तक गणीत में क्रियाओं को नियम तथा विधिपूर्वक हल नहीं किया जाता, तब तक शुद्ध परिणाम प्राप्त हो नहीं सकते। इस प्रकार गणित नियमित रूप से तथा विधिवत् मेगर ने कार्य सूचक क्रियाओं की सहायता ली, जिनकी सहायता से अध्यापक उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिख सकते हैं। इस प्रकार कार्य–सूचक क्रियाओं की सहायता से बालकों से पूर्व व्यवहार तथा उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण उद्देश्यों को निर्धारित किया जाता है। विभिन्न प्राप्य उद्देश्यों के लिए दी गई कार्य–सूचक क्रियाओं का चुनाव करके विषय–वस्तु के साथ प्रयुक्त करके उस उद्देश्य का व्यावहारिक रूप लिखा जाता है। उदाहरणार्थ – गणित में ‘लेखाचित्र द्वारा युगपत समीकरणों का हल‘ के ज्ञान, बोध व प्रयोग शिक्षण उद्देश्य को व्यवहारिक रूप में अग्र प्रकार लिख सकते हैं –
प्राप्य–उद्देश्य – ज्ञान
1. बालक ‘युगपत समीकरणों‘ का प्रत्यास्मरण कर सकेंगे।
2. बालक युगपत समीकरणों को परिभाषित कर सकेंगे।
प्राप्त उद्देश्य – बोध
1. बालक युगपत समीकरणों के उदाहरण दें सकेंगे।
2. बालक युगपत समीकरणों को ग्राफ द्वारा प्रयुक्त कर सकेंगे।
प्राप्त उद्देश्य – ज्ञानोपयोग
1. बालक युगपत समीकरणों को ग्राफ पर प्रदर्शित कर सकेंगे।
2. बालक युगपत समीकरणों को हल कर सकेंगे।
गणित परिषद –(Maths Pedagogy FOR CTET-UPTET-HTET-BTET-SUPER TET)
गणित परिषद्, गणित की पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की रीढ़ की हड्डी है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि शिक्षण उपलब्धि की दृष्टि से कक्षा से बाहर की गयी वैज्ञानिक क्रियाएं नियमित कक्षा क्रियाओं का मुकाबला करती हैं। अनेक ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं, जिनमें पूर्ववर्ती क्रियाएं अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। गणित परिषद में शिक्षा ‘करके सीखना‘ पर आधारित होती है, इस कारण यह अधिक रुचिपूर्ण होती है। औपचारिक कक्षा शिक्षण की अपेक्षा यह छात्रों की योग्यता और रुचि के अधिक अनुरूप होती हैं, क्योंकि इसमें किसी प्रकार के निश्चित पठन–पाठन पर अधिक जोर नहीं दिया जाता। इस कारण यहां छात्रों की सृजनात्मक शक्ति का अधिक विकास होता है।
गणित परिषद के उद्देश्य
1. छात्रों की समस्या समाधान विधि के आधार पर गणित संबंधी अभिरुचि विकसित करना।
2. छात्रों का दैनिक जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विकसित करना।
3. गणित को रोचक कार्य रूप में प्रोत्साहित करना।
4. छात्रों में परस्पर सहयोग एवं स्वस्थ प्रतियोगिता विकिसत करना।
5. अन्वेषणात्मक, रचनात्मक एवं आविष्कारात्मक योग्यताओं को विकसित करना।
6. छात्रों को विज्ञान की नवीनतम प्रगति एवं उसके दैनिक जीवन में उपयोग से परिचित करना।
7. छात्रों में तर्क व निरीक्षण शक्ति विकसित करना।
8. दूसरी विज्ञान परिषदों से सम्पर्क स्थापित करना और उनके साथ सूचनाओं और क्रियाओं का विनिमय करना।
9. जिला, प्रदेशीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर की परिषदों की सदस्यता प्राप्त करना।
शिक्षा के मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य
- पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन करना।
- परीक्षा प्रणाली में सुधार करना।
- निर्देशन एवं परामर्श (Guidance and Counselling) हेतु उचित अवसर प्रदान करना।
- अध्यापकों की कार्यकुशलता एवं सफलता का मापन करना।
- बालकों के व्यवहार–सम्बन्धी परिवर्तनों की जांच करना।